तो तमिलनाडु और महाराष्ट्र पर हिंदी थोपने से पहले सवाल ये नहीं होना चाहिए कि हिंदी को कौन फेल कर रहा है — गैर-हिंदी भाषी या खुद हिंदी भाषी?