अगर पानी, स्वास्थ्य और सफ़ाई का ज़िम्मा हर दिन महिलाओं के कंधों पर है, तो फिर नीतियाँ ज़्यादातर पुरुष ही क्यों बनाते हैं?
क्या सिर्फ़ नारों से काम चलेगा, या ज़मीनी शासन में महिलाओं को असल में केंद्र में लाने का समय आ गया है?
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