अगर 2022 में 11,290 किसान आत्महत्याएं हो सकती हैं,
तो क्यों उनकी मुश्किलें दिखाने के लिए 'मार्चिंग इन द डार्क' जैसी डॉक्युमेंट्री की जरूरत पड़ती है,
बजाय इसके कि सरकार कोई असरदार नीति लाकर हल निकाले?