जब देश की अदालतों में 7.5 लाख से ज़्यादा ज़मीन विवादों के मुक़दमे लंबित हों, और वक़्फ़ की ज़मीनें 6 लाख एकड़ में फैली हों — तो वक़्फ़ बोर्ड से ज़मीन की पहचान का अधिकार छीनकर सरकार कौन-सी पारदर्शिता लाना चाहती है? या फिर ये भी बुलडोज़र राजनीति का एक और रूप है, बस इस बार अफ़सरशाही की नई वर्दी पहनकर?