भारत की राज्य विश्वविद्यालयों की हालत दशकों से चली आ रही जानबूझकर की गई फंडिंग की कमी के कारण खराब है—टपकती छतें, खाली फैकल्टी पद और टूटे हुए लैब।
ऐसे में क्या अब IIT मद्रास के ₹131 करोड़ वाले एलुमनी डोनेशन ड्राइव को ही नई शिक्षा नीति मान लिया जाए?
क्या क्राउड फंडिंग ही एकमात्र विकल्प बचा है हमारे पास?