As the middle class drowns in debt (17.4% of GDP in household debt!) and basic needs gobble up 65% of their income, is the Government's "Economic Progress" just another illusion?
जब मिडल क्लास क़र्ज़ में डूब रहे हैं (घरेलू क़र्ज़ 17.4% जी.डी.पी. का!) और उनकी ज़रूरतों पर 65% आय खर्च हो रही है, तो क्या सरकार की 'आर्थिक प्रगति' सिर्फ़ एक दिखावा है?