Budget planners are also wondering. Should they support the middle class that pays taxes, or help the 129 million people surviving on ₹181 a day income? What if they squeeze the middle class so much that next year they may also fall in the ₹181 club!
बजट बनाने वाले भी सोच रहे हैं— मिडिल क्लास को संभालें जो टैक्स भरती है, या उन 12.9 करोड़ लोगों की मदद करें जो मात्र ₹181 प्रतिदिन की आय में जी रहे हैं? कहीं ऐसा न हो कि मिडिल क्लास को इतना निचोड़ दें कि अगले साल वो भी ₹181 वाले क्लब में शामिल हो जाए!